द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, और उनमें से एक कहानी है एक बहरूपिए पौंड्रक की, जिसने खुद को श्रीकृष्ण बताकर लोगों को धोखा देने की कोशिश की। यह कहानी भागवत पुराण और महाभारत में वर्णित है और इसने धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
नकली श्रीकृष्ण का उदय
पौंड्रक नामक एक राजा था, जो अहंकारी और धोखेबाज़ था। वह खुद को भगवान श्रीकृष्ण मानता था और यह विश्वास दिलाने के लिए उसने कई चालाकियां अपनाई। पौंड्रक का दावा करने का मुख्य कारण यह था कि उसके पिता का नाम वासुदेव था, जो श्रीकृष्ण के पिता का नाम था। पौंड्रक ने इस दावे को सशक्त बनाने के लिए माया और जादू का सहारा लिया।
उसने एक नकली सुदर्शन चक्र तैयार किया, जो उसकी माया शक्ति का हिस्सा था। साथ ही, उसने एक नकली कोस्तुब मणि भी बनवाई और अपने माथे पर मोरपंख सजाया। ये सभी चीजें उसे श्रीकृष्ण के समान दिखने में मदद करती थीं। पौंड्रक ने खुद को असली श्रीकृष्ण साबित करने के लिए धार्मिक प्रतीकों और शक्तियों का नकल किया और लोगों को यह विश्वास दिलाया कि वह असली श्रीकृष्ण है।
श्रीकृष्ण से सामना
राजा पौंड्रक ने अपने इलाके में इस बात का प्रचार किया कि वह श्रीकृष्ण है और उसने आस-पास के क्षेत्रों में लोगों को अपने अनुयायी बनने के लिए प्रेरित किया। उसने काशी नरेश से भी दोस्ती की और अपने प्रभाव को फैलाने की कोशिश की। एक दिन, उसने भगवान श्रीकृष्ण को एक संदेश भेजा जिसमें उसने दावा किया कि वह ही असली श्रीकृष्ण है। पौंड्रक ने श्रीकृष्ण को धमकी दी कि वह या तो मथुरा छोड़ दें या फिर उसके साथ युद्ध करें।
श्रीकृष्ण ने शुरू में इस चुनौती को नजरअंदाज किया, लेकिन जब पौंड्रक की हरकतें बढ़ने लगीं और उसकी माया के प्रभाव को महसूस किया गया, तो श्रीकृष्ण ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। श्रीकृष्ण ने तय किया कि वह पौंड्रक को सबक सिखाएंगे और उसकी धोखाधड़ी को उजागर करेंगे।
युद्ध की तैयारी और परिणाम
युद्ध के दिन, श्रीकृष्ण ने अपने सैनिकों के साथ युद्ध स्थल पर पहुंचकर देखा कि राजा पौंड्रक पूरी तरह से उनकी तरह दिखता था। पौंड्रक ने अपने नकली सुदर्शन चक्र और अन्य प्रतीकों के साथ युद्ध किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करके पौंड्रक की सारी माया को नष्ट कर दिया। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए पौंड्रक को हराया और उसकी वास्तविकता को उजागर कर दिया।
पौंड्रक की हार के बाद, उसकी धोखाधड़ी का पर्दाफाश हुआ और उसे लोगों ने अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सत्य और धर्म की रक्षा की और एक और बहरूपिए को पराजित किया। यह घटना धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक बनी और यह दर्शाया कि कोई भी व्यक्ति सच्चाई और धर्म की शक्ति से पराजित हो सकता है, चाहे वह कितना भी चालाक क्यों न हो।
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