चैत्र की शीतला सप्तमी के दिन व्रत रखा जाता है। दरअसल होली के बाद दो दिन शीतला माता के व्रत किए जाते हैं, पहला शीतला सप्तमी और दूसरा शीतला अष्टमी। जिन लोगों के अष्टमी की पूजा होती है, उनके कहा है अष्टमी तिथि 2 अप्रैल को और जिन लोगों के सप्तमी तिथि की पूजा होती है, उन लोगों के शीतला सप्तमी 1 अप्रैल को मनाई जाएगी उदय तिथि के अनुसार शीतला सप्तमी 1 अप्रैल को है। शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली देवी मानी गई हैं। इसलिए सूर्य का तेज बढ़ने से पहले इनकी पूजा उत्तम मानी जाती है। पूजन का समय सुबह से 1 अप्रैल को है। इस दिन बासी खाने का महत्व है। दिन के एक पहर माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है।
शीतला सप्तमी का महत्व-
शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। माता को बासी खाने के प्रसाद का भोग लगाया जाता है। शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी भोजन को एक दिन पूर्व की बना लिया जाता है। दूसरे दिन शीतला माता को भोग लगाया जाता है। अगले दिन खाना नहीं बनाया जाता, सभी उसी खाने को ग्रहण करते हैं।
शीतला सप्तमी पूजन विधि-
छंडे जल से स्नान करके माता के मंदिर में जाएं, वहां उन्हें अपनी परंपरा के अनुासर चने की दाल, गुझिया, गुड़ चावल, हलवा आदि का भोग लगाएं। । शीतला सप्तमी की कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के पांच पांच छापे लगाए जाते हैं। जो जल शीतला माता को अर्पित किया जाता है उसमें से थोड़ा सा बचाकर घर लाते हैं और उसे पूरे घर में छींट देते हैं। इससे शीतला माता की कृपा बनी रहती है और रोगों से घर की सुरक्षा होती है।
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